Wednesday, 22 November 2017

Fir ek chaah फिर एक चाह 😜


फिर एक चाह हो फिर एक आह निकले ,
रोज़-रोज़ की ख्वाहिश का तोड़ स्वाह निकले।


फिर कोई खुश दिखे और फिर जलन के मारे,
गर्ममिज़ाजी में सर्दी का एक और सप्ताह निकले।


खूब बाज़ार लगते गर ईमान ही बेचना होता,
शाम ढली ,सामान समेटा,दौड़े जिधर सुबह निकले।


तालियों से घबराई ,है जाँ पड़ी सकते में,
जान निकले मेरी जब किसी मुंह से वाह निकले ।


खैर मेरा दिल टटोलने ..है कलेजा तो आगे आ,
मेरी जेब से ही आए दिन आठ-दस शुबहा निकले ।


होते होते भूलने लगता है कि ग़ज़ल शुरू क्यों हुई?
कुछेक मिसरे तो सिरे से खामख्वाह निकले।


धर सिर माथे चारस जो तेरा लिखा आएगा पढ़ने
जिसकी बाहर ख़ुदपरस्ती से निगाह निकले।


कोई बताये मुझे वो फूंक मार-मार हाथों को
मेरी किताब के पन्ने पलट रहे थे,
सर्दियों में ये नशा काफी होगा
बाद में चाहे अफवाह निकले।

Thursday, 16 November 2017

इन पहाड़ों से Inn Pahado se


शहर की चमचमाती दीवारों में वो सुकून नहीं
जो गांव के जर्जर घर में है,
सब कुछ पा के भी ठगी सी ज़िन्दगी,
आज फिर वापसी के सफर में है।


इन पहाड़ों से हो मेरी शिनाख्त
तुमसे ज्यादा रूबरू हैं मेरे दर्द से ये दरख्त ,
निकलते वक्त 
यहां की मिट्टी का रंग ले गया था बालों में,
मिला कर देख रहा हूँ आज
कितना बदल गया इन सालों में।


गीत पंसदीदा होते थे कुछ , धुन याद आये तो गाएँ
ये पहाड़ ये आसमाँ मेरे पन्ने मेरा कैनवस 
यहीं रची थीं कुछ कविताएं,
और उकेरे थे ख्वाब बिन कम्पस!



लौट कर वैसे आज भी नहीं आया हूँ,
बस कुछ शहरी दोस्तों को गांव दिखाने लाया हूँ।

Saturday, 14 October 2017

Wapasi ka rasta (You Tube Poems )

Just posting my poem's You Tube link to see if it works or not..
Let'see
Link is up there and down below

Wapasi ka Rasta by Chaaras (You Tube Poems)
O yes you saw it
Now click na


Saturday, 27 May 2017

शहर की दास्ताँ (Shehar ki Dastan)


शहर की दास्ताँ को कलमबद्ध करते हैं,
ये शहरवाले भी हद करते हैं.....!

बच्चों को सयानेपन की हिदायत देकर,
खुद बच्चों सी हरकत करते हैं.....!

जिसे गुनगुना कर मुस्कुराया जा सके,
चल ऐसे गीत की आमद करते हैं....!

इन मेहमानों को गले से लगाते हैं,
इन ग़मों की खुशामद करते हैं.....!

जवाँ दिल की आरज़ू है चाँद,
इस उम्र में लोग अक्सर ऐसी ज़िद करते हैं....!

हक़ीक़त में तो बड़े बदसूरत हैं ये "चारस",
इन ज़ख्मों पर खूबसूरत सी ज़िल्द करते हैं....!

Tuesday, 16 May 2017

मैं कौन हूँ तलाश लूँ (Mai Kaun Hoon Talash loon)

तुमसे कोई शुबह नहीं  ,मैं कौन हूँ तलाश लूँ , 
उस तलक मैं सोच लूँ, ख़ामोश रह के सांस लूं.....!

जन्नत के सौदे में होगी कीमत भले ही रूह की,
वहम में जी लूँ या कोई  फिर बदन तराश लूं ....!

या रोज़ोशब ख्याल जिस प्यास के हैं कौंधते ,
नाम उसका लेके अब हाथ में शराब लूं.......!

बहुत फिकर जहान की, जहान के मक़ाम की ,
बाजार जा के इस दफा कोई नई किताब लूं .....!

लम्हे की ज़िन्दगी जिया ,मेरा कहा मेरा किया, 
कितनी बातों पे अब वक्त से इंसाफ़ लूँ.......!

पहचानने लगे हैं लोग चारस है शख्स कोई ,
कहने से पहले गौर करूँ ,या और एक नक़ाब लूँ ......!

तुमसे कोई शुबह नहीं  ,मैं कौन हूँ तलाश लूँ , 
उस तलक मैं सोच लूँ, ख़ामोश रह के सांस लूं.....!

Saturday, 15 April 2017

याद दिलाता है शहर का कोना-कोना (yaad Dilata Hai Shehar ka Kona-Kona)


याद दिलाता है शहर का कोना-कोना,
जब होता है उसका ना होना....!

क्या पता वो आ कर चुप करा जाये,
आओ खेलते हैं रोना-रोना.......!

उसने कहा क्या मिलेगा पड़कर प्यार में,
जो फसल काटनी नहीं उसका बीज क्यों बोना...!

समझ लेना ख्वाहिशों का इंतकाल हो चुका है,
भाने लगे रूप जो तन्हाई का सलोना.....!

जब तलक किस्मत की जाग खुले,
तब तलक पड़ जाएगा ज़िन्दगी को सोना....!

Sunday, 2 April 2017

जी में आता है कि दास्ताँ सुनाऊँ मैं (Jee Mein Ata Hai Ki Dastan Sunaaun Main)

जी में आता है कि दास्ताँ सुनाऊँ मैं ,
टूटे दिल का अपने मजमा लगाऊं मैं..!
हो सकता है आगे चलकर रिश्ते ना निभाऊँ मैं,
मगर बेगैरत नही जो घर की दीवार गिराऊं मैं...!
रोज़ दिल के टुकड़ों से बात करता हूँ ,
और कैसे कहो दिल बहलाऊँ मैं.....!
नज़र आता है साफ़ दिलासों में मेरे,
हक़ीक़त में कितना झूठा हूँ मैं.....!
है लंबा सफर हौसले भी ज़ख़्मी,
शायद बदन भी नुचवाऊँ मैं.....!
वो मेरा ना बन सका खैर छोडो ,
अपने हमराही का हौसला हूँ मैं....!
खुदा मेरा मेरी सुनता कहाँ है "चारस",
क्यों ना काफिरों को आवाज़ लगाऊँ मैं...!

Monday, 20 March 2017

मैं नहीं ऐसा (Main Nahi Aisa)

मैं नहीं ऐसा कि आनाकानी करूँ,
या फिर ज़ुबान से अपनी फिरूँ....!

दुनिया को बाद में दूंगा सलाह,
अपने घर की पहले दरार भरूँ....!

लोगों का छाती पीटना देख,
चाहता हूँ एक रोज़ के लिए मरुँ....!

बेशक लाओ मुहब्बत का तोहफा,
गनीमत है ना डरूँ.......!

उसके क़दमों पर ही फबते दोनों,
एक से हैं मैं और घुँघरू .........!

Thursday, 2 March 2017

जो हासिल हुआ था हमसफ़र (Jo hasil hua tha Humsafar )

जो हासिल हुआ था हमसफ़र की शक्ल में ,
वो खो गया इसी शहर की शक्ल में ....!!

कांच के ख्वाब टूटे तो हुआ मालूम ,
हर बार खुदा नहीं होता पत्थर की शक्ल में...!

ऐसा नहीं कि घर ना सजे तेरी गैरमौजूदगी में,
पर कुछ कमी सी रहती है इस घर की शक्ल में....!

तू ही जान तेरे सीने की गहराई में छुपा था क्या ,
मुझे मुहब्बत लगता था ऊपर ऊपर की शक्ल में....!

जीते रहने की दुआ देने से पहले याद रहे 'चारस' ,
मरना उन्हें भी पड़ा जो आये पैगम्बर की शक्ल में...!

दैत्य

  दैत्य   झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...