याद दिलाता है शहर का कोना-कोना,
जब होता है उसका ना होना....!
क्या पता वो आ कर चुप करा जाये,
आओ खेलते हैं रोना-रोना.......!
उसने कहा क्या मिलेगा पड़कर प्यार में,
जो फसल काटनी नहीं उसका बीज क्यों बोना...!
समझ लेना ख्वाहिशों का इंतकाल हो चुका है,
भाने लगे रूप जो तन्हाई का सलोना.....!
जब तलक किस्मत की जाग खुले,
तब तलक पड़ जाएगा ज़िन्दगी को सोना....!
क्या पता वो आ कर चुप करा जाये,
आओ खेलते हैं रोना-रोना.......!
उसने कहा क्या मिलेगा पड़कर प्यार में,
जो फसल काटनी नहीं उसका बीज क्यों बोना...!
समझ लेना ख्वाहिशों का इंतकाल हो चुका है,
भाने लगे रूप जो तन्हाई का सलोना.....!
जब तलक किस्मत की जाग खुले,
तब तलक पड़ जाएगा ज़िन्दगी को सोना....!
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