जी में आता है कि दास्ताँ सुनाऊँ मैं ,
टूटे दिल का अपने मजमा लगाऊं मैं..!
हो सकता है आगे चलकर रिश्ते ना निभाऊँ मैं,
मगर बेगैरत नही जो घर की दीवार गिराऊं मैं...!
रोज़ दिल के टुकड़ों से बात करता हूँ ,
और कैसे कहो दिल बहलाऊँ मैं.....!
नज़र आता है साफ़ दिलासों में मेरे,
हक़ीक़त में कितना झूठा हूँ मैं.....!
है लंबा सफर हौसले भी ज़ख़्मी,
शायद बदन भी नुचवाऊँ मैं.....!
वो मेरा ना बन सका खैर छोडो ,
अपने हमराही का हौसला हूँ मैं....!
खुदा मेरा मेरी सुनता कहाँ है "चारस",
क्यों ना काफिरों को आवाज़ लगाऊँ मैं...!
टूटे दिल का अपने मजमा लगाऊं मैं..!
हो सकता है आगे चलकर रिश्ते ना निभाऊँ मैं,
मगर बेगैरत नही जो घर की दीवार गिराऊं मैं...!
रोज़ दिल के टुकड़ों से बात करता हूँ ,
और कैसे कहो दिल बहलाऊँ मैं.....!
नज़र आता है साफ़ दिलासों में मेरे,
हक़ीक़त में कितना झूठा हूँ मैं.....!
है लंबा सफर हौसले भी ज़ख़्मी,
शायद बदन भी नुचवाऊँ मैं.....!
वो मेरा ना बन सका खैर छोडो ,
अपने हमराही का हौसला हूँ मैं....!
खुदा मेरा मेरी सुनता कहाँ है "चारस",
क्यों ना काफिरों को आवाज़ लगाऊँ मैं...!
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