Saturday, 15 April 2017

याद दिलाता है शहर का कोना-कोना (yaad Dilata Hai Shehar ka Kona-Kona)


याद दिलाता है शहर का कोना-कोना,
जब होता है उसका ना होना....!

क्या पता वो आ कर चुप करा जाये,
आओ खेलते हैं रोना-रोना.......!

उसने कहा क्या मिलेगा पड़कर प्यार में,
जो फसल काटनी नहीं उसका बीज क्यों बोना...!

समझ लेना ख्वाहिशों का इंतकाल हो चुका है,
भाने लगे रूप जो तन्हाई का सलोना.....!

जब तलक किस्मत की जाग खुले,
तब तलक पड़ जाएगा ज़िन्दगी को सोना....!

Sunday, 2 April 2017

जी में आता है कि दास्ताँ सुनाऊँ मैं (Jee Mein Ata Hai Ki Dastan Sunaaun Main)

जी में आता है कि दास्ताँ सुनाऊँ मैं ,
टूटे दिल का अपने मजमा लगाऊं मैं..!
हो सकता है आगे चलकर रिश्ते ना निभाऊँ मैं,
मगर बेगैरत नही जो घर की दीवार गिराऊं मैं...!
रोज़ दिल के टुकड़ों से बात करता हूँ ,
और कैसे कहो दिल बहलाऊँ मैं.....!
नज़र आता है साफ़ दिलासों में मेरे,
हक़ीक़त में कितना झूठा हूँ मैं.....!
है लंबा सफर हौसले भी ज़ख़्मी,
शायद बदन भी नुचवाऊँ मैं.....!
वो मेरा ना बन सका खैर छोडो ,
अपने हमराही का हौसला हूँ मैं....!
खुदा मेरा मेरी सुनता कहाँ है "चारस",
क्यों ना काफिरों को आवाज़ लगाऊँ मैं...!

दैत्य

  दैत्य   झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...