सर्दियों में किसी तालाब के जमने का सिलसिला,
उस जमाव के देर तक थमने का सिलसिला ।
गच्चक , रेवडी और मूँगफली का यादगार स्वाद,
रिज ,माल रोड की गहमागहमी में दोस्तों की मुलाकात ।
बर्फ से भी ठंड़े हो जाने वाले हाथ ,
बेसन के घोल से लिपी-पुती परात ।
ताश के पत्तों से खेला जाने वाला खेल ,
मफलर ,टोपी ,दस्तानों का एक बेजोड़ मेल ।
बर्फ पर चलते कदमों की गप्प -गप्प आवाज़,
कागज का ढ़ेर समेट आग में झुलसने वाले राज़।
साथ ठंड़ से घिरी चारदीवारी में कोई बंद,
सांसों से उड़ेल धुँआ मुस्कुराना मंद -मंद।
चुस्कीयों में चाय की टाले जाने वाले काम ,
लिफ्ट से टॉलैंड़ तक का लंबा जाम ।
पेडों की शाखों पर टिकने वाले बर्फ के टुकड़े ,
ऐसी रातों में छेड़े जाने वाले गीतों के मुखड़े ।
रज़ाईयों में दुबक कर खेली जाने वाली अंताक्षरी ,
हिंदी गानों के बीच मिलाई जाने वाली टांकरी ।
गुनगुनी धूप के नाम जाने कितने दस्तावेज़ ,
सूरज सुस्त -सुस्त , सर्दी बहुत तेज़ ।
शिमला और सर्दियां .....
किसी रुमामी कलाकार की सोच का नमूना ,
चीड़ देवदार से सज़ी रुई की वादियां छूना ,
यही दरख्वास्त छोड़ खत्म होगा 'चारस'
सर्दियों में जिंदा कर देना ! हर बरस !
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