वो कारवां निकल गया है दूर कहीं दूर....
ना दीदार में नशा रहा ना आंख में सुरूर।
साथ कोई चलता हो तो बेशक चले,
हार कर ताकि राह में लगा सकें गले,
उस गली जाना है जहाँ के गम मशहूर,
जहां होता नहीं नशा अगले रोज़ काफूर।
उम्र सी गुज़री पर ज़ेहन में ताजा ही रही
आंख भर भर मिलती रही वो छोटी सी कमी
क्या क्या ना करा गया इश्क़ का फितूर,
करीबी भी अचरज करें,के ऐसे भी हैं हुज़ूर।
हैं सिलवटों में अब भी उतनी ही करवटें ,
आखिर कोई बिस्तर तो हो जहां नींद भी बँटे,
हर पहलू हक़ीक़त है, वो ख्वाब सुदूर
शिकायत भी मैं करूँगा और जीना भी है ज़रूर।
ना दीदार में नशा रहा ना आंख में सुरूर।
साथ कोई चलता हो तो बेशक चले,
हार कर ताकि राह में लगा सकें गले,
उस गली जाना है जहाँ के गम मशहूर,
जहां होता नहीं नशा अगले रोज़ काफूर।
उम्र सी गुज़री पर ज़ेहन में ताजा ही रही
आंख भर भर मिलती रही वो छोटी सी कमी
क्या क्या ना करा गया इश्क़ का फितूर,
करीबी भी अचरज करें,के ऐसे भी हैं हुज़ूर।
हैं सिलवटों में अब भी उतनी ही करवटें ,
आखिर कोई बिस्तर तो हो जहां नींद भी बँटे,
हर पहलू हक़ीक़त है, वो ख्वाब सुदूर
शिकायत भी मैं करूँगा और जीना भी है ज़रूर।
(Shikayat bhi maine ki, jeeya bhi bharpur)
वो कारवां निकल गया है दूर कहीं दूर....
ना दीदार में नशा रहा ना आंख में सुरूर
वो कारवां निकल गया है दूर कहीं दूर....
ना दीदार में नशा रहा ना आंख में सुरूर
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