तुम रूठ मत जाना
मुझे मुशिकल से साँस आती है इस ख्याल से भी,
पता है तुम हँस दोगी, थोड़ी देर में
कर लोगी सुलह अपने हाल से भी।
धीरे-धीरे फैलता मुझमें, कोई ज़हर
महज़ आँसू नहीं छलकता तुम्हारी आँखों से,
मैं ठीक उतना ही डरा सा हूँ
जितना गैरमौजूद हौसला तेरी बातों से।
दूरियों की लकीरों पर जमते-जमते परत
दीवार सी खड़ी होने लगी,
इस पार मैं,उस पार तुम,
पुकारो, कि गुमशुदी होने लगी।
तीन-चार दिन मिलना, हंस के मिलना,
कर तो लेते हो,
चेहरा बयाँ करता है
किस तकलीफ का बैठे गला रेते हो।
और साँस रोके मैं खड़ा
कर रहा इंतज़ार
मंज़िल के आने का,
नहीं!
हमसफर के छोड़ जाने का।
मुझे मुशिकल से साँस आती है इस ख्याल से भी,
पता है तुम हँस दोगी, थोड़ी देर में
कर लोगी सुलह अपने हाल से भी।
धीरे-धीरे फैलता मुझमें, कोई ज़हर
महज़ आँसू नहीं छलकता तुम्हारी आँखों से,
मैं ठीक उतना ही डरा सा हूँ
जितना गैरमौजूद हौसला तेरी बातों से।
दूरियों की लकीरों पर जमते-जमते परत
दीवार सी खड़ी होने लगी,
इस पार मैं,उस पार तुम,
पुकारो, कि गुमशुदी होने लगी।
तीन-चार दिन मिलना, हंस के मिलना,
कर तो लेते हो,
चेहरा बयाँ करता है
किस तकलीफ का बैठे गला रेते हो।
और साँस रोके मैं खड़ा
कर रहा इंतज़ार
मंज़िल के आने का,
नहीं!
हमसफर के छोड़ जाने का।
No comments:
Post a Comment