Sunday, 28 August 2016

क़यामत की वो रात(QYAMAT KI WO RAAT)

बेजान दिलों तक पे शिकन तसव्वुर  ले आया उसका ,
वो जो नरमदिल थे ,अंजाम उनका क्या हुआ ? माशा-अल्लाह !

लफ़्ज़ों को खींच दिया सबने भाषणों की तरह बेतहाशा ,
पहले भी कई बार था हर लफ्ज़ सुना हुआ। माशा-अल्लाह !

कई दिनों से रूठा है हमारी छत पर से चाँद,
हमने रक्खा है उसे गैरों में देखा हुआ। माशा-अल्लाह!

ख़ुदा ने भर दी उसमें शायरी की हर एक अदा ,
जिसने भी देखा कह उठा ,माशा-अल्लाह !माशा-अल्लाह!

नसीब हुआ तो उनको जो शोर मचाया करते थे ,
मेरी शराफत का ये खूब सिला हुआ , माशा-अल्लाह !

क़यामत की वो रात दिल छू गयी 'चारस ',
पहली बार देखा हमने ,हुस्न को रोता हुआ।माशा-अल्लाह !

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