1.
जुबां भी मैंने पाई , चुप भी रहना था,
जन्नत भी मुझे जाना था ,झूठ भी कहना था।
ग़ज़लें पाट दी दुनियादारी को कोसते
जब तक रुख ज़िन्दगी तय ना था।
दुनिया की दोस्ती कबूल पड़ी करनी ,
आखिर..... इसी में रहना था।
2.
दिल टूटने का गम संभल गया,
अभी जुदाई का दर्द भी सहना था।
चोट सहेजने का खज़ाना था ,
हँसी नुमाइश का गहना था।
शुरुआत पे इश्क़ की कुल मिलाकर ,
बस इतना ही कहना था।
ख़ून सना था लिबास मेरा
मैंने रंग समझ जिसे पहना था।
क्यों लिखता है बेफिज़ूल बातें
चारस तू ऐसा कतई ना था।
तकलीफ को लफ़्ज़ों का सहारा लेकर
कलम से रिसते रहना था।
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