Sunday, 28 August 2016

क़यामत की वो रात(QYAMAT KI WO RAAT)

बेजान दिलों तक पे शिकन तसव्वुर  ले आया उसका ,
वो जो नरमदिल थे ,अंजाम उनका क्या हुआ ? माशा-अल्लाह !

लफ़्ज़ों को खींच दिया सबने भाषणों की तरह बेतहाशा ,
पहले भी कई बार था हर लफ्ज़ सुना हुआ। माशा-अल्लाह !

कई दिनों से रूठा है हमारी छत पर से चाँद,
हमने रक्खा है उसे गैरों में देखा हुआ। माशा-अल्लाह!

ख़ुदा ने भर दी उसमें शायरी की हर एक अदा ,
जिसने भी देखा कह उठा ,माशा-अल्लाह !माशा-अल्लाह!

नसीब हुआ तो उनको जो शोर मचाया करते थे ,
मेरी शराफत का ये खूब सिला हुआ , माशा-अल्लाह !

क़यामत की वो रात दिल छू गयी 'चारस ',
पहली बार देखा हमने ,हुस्न को रोता हुआ।माशा-अल्लाह !

Wednesday, 24 August 2016

मुल्क बनाने का काम चल रहा है (Mulk banane ka kaam chal raha hai)

पहाड़ पिस रहे हैं
कहीं मैदान जल रहा है ,
मुल्क बनाने का काम चल रहा है

बस्तियाँ बसने लगीं, लोग उजड़ने लगे हैं ,
मैंने सुना है हम आगे बढ़ने लगे हैं।

नदियाँ कस दी गईं  ,सरहदें खींच दीं गईं ,
कान ढक लिए गए ,आँखें मींच दी गईं ,

मन  है कि फिर भी बेतहाशा मचल रहा है,
मुल्क बनाने का काम चल रहा है।

सामान महँगा हुआ जाता है
ईमान सस्ता,
पहले कभी देखा नहीं गया इतना इंसान सस्ता ,

दो पल के आराम के लिए लग रहा
उम्र भर का सुकून दांव पर ,
चपल - चालाक शहर भारी पड़ रहे
सीधे-सादे  गाँव पर,

हालात बदलते हमने नहीं देखे
हाँ !
बर्ताव ज़रूर बदल रहा है ,
मुल्क बनाने का काम चल रहा है।

इतनी भीड़, मारामारी ,
जहाँ देखो सर ही सर ,
कि बामुश्किल ही नसीब है आधा-पौना सा घर ,

उधर मंदिरों में बैठे  पत्थर ऐश में,
इधर सड़कों पर घूम रहे बेरोज़गार तैश में ,

पारा चढ़ रहा है ,लावा पिघल रहा है ,
मुल्क बनाने का काम चल रहा है।
मुल्क बनाने का काम चल रहा है।




दैत्य

  दैत्य   झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...