Tuesday, 19 May 2015

रूह का

नमकीन आँसू फर्श पर लेटे,
दो-चार पलकों ने समेटे।

जाने हुआ फिर  क्या,
रोते-रोते हँसना पड़ा ,
याद में उनकी ..
खातिर जिनकी तरसना पड़ा ,

किसी गैर मंज़िल का
अरमान कर बैठे ,
बिन चले पैरों का
नुकसान कर बैठे,

नमकीन आँसू फर्श पर लेटे,
दो-चार पलकों ने समेटे।

नरम पड़ते देखा उनको
जब उन्हें ज़रूरत मेरी हुई,
फिर भी सबके सामने
शक्ल बदसूरत मेरी हुई ,

उन्हें पाना जितना मुश्किल
भूलना हमें वो उतना ही
आसान समझ बैठे ,
जिनके ख्याल है दिल बेचैन ..
हम रूह का
इत्मीनान समझ बैठे ,

नमकीन आँसू फर्श पर लेटे,
दो-चार पलकों ने समेटे।

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