Sunday, 14 June 2015

अक्स आईने में

अक्स आईने में आजकल आपके आते हैं ,
अक्सर जब हम खुद को अकेला पाते हैं। 

आसान नहीं अंदेशा अंदरूनी असलियत का
अमूमन अंदर से लोग अफ़लातून कहलाते हैं। 

अबके आसमाँ अगर अमावस की आरज़ू को अड़ा ,
चांदनी चेहरे से चुरा आपके चाँद को दे आते हैं।

सुकून और सजा साथ साथ , सरफ़िरों को सौगात
अजूबे ही अल्हड आशिक़ी को अमल में लाते हैं।
 
आखिर अल्फ़ाज़ अलावा आपके और कोई कैसे बने 
आप आ आ कर अंजुमन में अफ़साने अर्ज़ कराते हैं।
(अंजुमन -महफ़िल )
अलग-अलग आदत और अदा आदमी की आज भी है 
आज भी आदमी को अल्लाह से ज्यादा आदमी आजमाते हैं।

No comments:

Post a Comment

दैत्य

  दैत्य   झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...