अक्स आईने में आजकल आपके आते हैं ,
अक्सर जब हम खुद को अकेला पाते हैं।
आसान नहीं अंदेशा अंदरूनी असलियत का
अमूमन अंदर से लोग अफ़लातून कहलाते हैं।
अबके आसमाँ अगर अमावस की आरज़ू को अड़ा ,
चांदनी चेहरे से चुरा आपके चाँद को दे आते हैं।
सुकून और सजा साथ साथ , सरफ़िरों को सौगात
अजूबे ही अल्हड आशिक़ी को अमल में लाते हैं।
आखिर अल्फ़ाज़ अलावा आपके और कोई कैसे बने
आप आ आ कर अंजुमन में अफ़साने अर्ज़ कराते हैं।
(अंजुमन -महफ़िल )
अलग-अलग आदत और अदा आदमी की आज भी है
आज भी आदमी को अल्लाह से ज्यादा आदमी आजमाते हैं।
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