Saturday, 9 May 2015

तल्ख़ी आपकी

निढ़ाल हुआ चाँद भी तल्ख़ी से आपकी ,
दौड़ी आई चाँदनी शक्ल लेने लिबास की।

मनमर्ज़ियों की शोख़ियाँ अर्ज़ियाँ सब टाल कर,
किसके लिए रखे हुए हो खुद को सँभाल कर,

वक़्त से पहले टंगे तारे , टोह लेने जनाब की,
और तू समझा 'चारस ',सिर्फ तूने नींदें ख़राब की।

हालाँकि उम्र इतनी नहीं कि फ़ायदा -नुकसान लो,
नीयत खिदमतगारों की  मगर ज़रा पहचान लो,

हुस्न बने फूल तो लुटे खुशबू बाग़ की,
गर बने काँटा तो चुगे मछलियाँ तालाब की।

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