Tuesday, 10 March 2015

तकदीरें सब झूठी हैं।

तकदीरें सब झूठी हैं, तसवीरें फरेबी।
किस्मत से महरूम हाथ... लकीरों से भरे भी।

ज़िन्दगी कुछ नहीं चाहती,सब अपनी ज़रूरत है,
सदियों की ख़्वाहिशें, दो-चार दिन की आदत है ,
हुकूमतों को कम पड़े हैं, महलों के आसरे भी।
किस्मत से महरूम हाथ... लकीरों से भरे भी।

मेरे ज़ख़्मों को ढ़कने तो अँधेरा आगे आया
रोशनी ने बिना कपड़ों के हर राह मुझे नचाया
एक दफ़ा जीने के लिए सौ तरह से मरे भी
किस्मत से महरूम हाथ... लकीरों से भरे भी।
तकदीरें सब झूठी हैं, तसवीरें फरेबी।

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