बहुत भटका दर-ब-दर बेक़रार की तरह,
तुम आराम देने आ जाओ इतवार की तरह।
खाली बोतल की तरह ठोकरों से बजता-बचता,
आज भी अधूरी मंज़िल हर बार की तरह।
हालातों को ललकार बैठी जिस्म की गर्मी,
इश्क़ सर चढ़ रहा था बुखार की तरह।
मेरे ज़ख़्म नमक से ढक कर वो बोले,
चोट जिस्म से उभरती थी वर्ना दरार की तरह।
क्या बताऊँ 'चारस' आखिर किस तरह से वो,
ढह गया सहारा देकर मीनार की तरह।
मैं आखिरी सांसें गिन रहा था उसके सामने,
और वो पेश आने लगा दुनियादार की तरह।
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