हर बार बदला बदला लगता है।
मिलूं तो हंसता है,
ना मिलूं तो हंसता है,
ये शहर मना कर देता है
मेरी जागीर होने से।
और मैं इसकी ज़िद का
झूठा ही सही
मुरीद हूं।
मेरी तरकीब के जवाब में
जब ये खेल बदलता है,
एक दूसरे की शक्ल देख,
हम दोनों ठहाका लगाते हैं।
हर बार बदला बदला लगता है।
मिलूं तो हंसता है,
ना मिलूं तो हंसता है,
ये शहर मना कर देता है
मेरी जागीर होने से।
और मैं इसकी ज़िद का
झूठा ही सही
मुरीद हूं।
मेरी तरकीब के जवाब में
जब ये खेल बदलता है,
एक दूसरे की शक्ल देख,
हम दोनों ठहाका लगाते हैं।
नहीं आता कोई पीछे,
ना साथ ही होगा,
हाँ। बियाबान में भटका,
हर एक आदमी होगा।
बहुत किस्से सुने ,बहुत तेज़ जुबां में,
शहर हामी भरता है, तो सही होगा।
कभी अपनी खुशी से खौफजदा ,
कभी अपने गम पे तसल्ली,
फिर ।
फिर ऐसा रोज़ ही होगा।
दैत्य झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...