Tuesday, 1 September 2020

समंदर की सैर

  

चढ़ा सिर फितूर कुछ


ये रही कश्ती पैर पर

चल समंदर की सैर पर


वक़्त की खामियां ज़रा

कुछ देर नज़रअंदाज़ हो

कल कल देखेंगे

आज ,आज ही आज हो,


सामने हो आईना


क्या नज़र गैर पर,

चल समंदर की सैर पर।



शुक्र मना आसाँ नही

कदम तोड़ रस्ता यह,

 नासमझ जुनूँ के लिए

सदियाँ तरसता यह,


मखमलों पर है लहू


और ज़ख्म पैर पर,

चल समंदर की सैर पर।


शिकायती ये दौर जब

उठा रहा था उँगलियाँ,

हम मग्न अपने सफर में

दौड़ा रहे थे कश्तियाँ,


मेरे दुश्मन, मेरे भाई,मेरे हमसाये,


तबियत की अपनी खैर कर,

चल समंदर की सैर पर।








No comments:

Post a Comment

दैत्य

  दैत्य   झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...