क्या दिल पे गुज़री, कैसे गुज़ारा वक़्त ,
क्या बताएं सच ,क्या सुनोगे अब,
ये जो बटोरी तुमने
उम्र दे कर समझ,
अच्छा है,
वर्ना
कल भी वही थे लफ्ज़,
आज भी वही हैं लफ्ज़।
दैत्य झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...
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