Thursday, 3 September 2020

कहते तो हैं

 कहते तो हैं कि तरसा करेंगे

मगर फिर जुदाई की दुआ किसलिए?


ना शाम ओ सुबह अपने गिरफ्त में ही हैं

इतनी शिद्दत से हमको रोका किसलिए?


दी ना गयी हमसे ढँग की एक दलील भी

कि हम हो गए हैं तबाह किसलिए?


मानी ना जाएगी तेरी बेगुनाही तू कुछ कर,

हाथ अपने दिल पर था रखा किसलिए?


वो जो विरासत में मिलते थे महलों के सुख

इश्क़ के किस्से में ज़िक्र उनका किसलिए?



उम्र ढल गयी, तेरा गुमान ना भूला(ढला)

लोग पूछते हैं बेबात "चारस" हँसा किसलिए?

Tuesday, 1 September 2020

समंदर की सैर

  

चढ़ा सिर फितूर कुछ


ये रही कश्ती पैर पर

चल समंदर की सैर पर


वक़्त की खामियां ज़रा

कुछ देर नज़रअंदाज़ हो

कल कल देखेंगे

आज ,आज ही आज हो,


सामने हो आईना


क्या नज़र गैर पर,

चल समंदर की सैर पर।



शुक्र मना आसाँ नही

कदम तोड़ रस्ता यह,

 नासमझ जुनूँ के लिए

सदियाँ तरसता यह,


मखमलों पर है लहू


और ज़ख्म पैर पर,

चल समंदर की सैर पर।


शिकायती ये दौर जब

उठा रहा था उँगलियाँ,

हम मग्न अपने सफर में

दौड़ा रहे थे कश्तियाँ,


मेरे दुश्मन, मेरे भाई,मेरे हमसाये,


तबियत की अपनी खैर कर,

चल समंदर की सैर पर।








क्या दिल पे गुज़री

 


क्या दिल पे गुज़री, कैसे गुज़ारा वक़्त ,

क्या बताएं  सच ,क्या सुनोगे अब,

ये जो बटोरी तुमने

उम्र दे कर समझ,

अच्छा है,

वर्ना

कल भी वही थे लफ्ज़,

आज भी वही हैं लफ्ज़।


दैत्य

  दैत्य   झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...