बीच के पन्नों में कालिख पोतकर
खूबसूरत सी ज़िल्द चढ़ा दी है।
कुछ कद्दावर ख्याल जो कभी
मेरे हुआ करते थे,
नाज़ था जिनपे मुझे,
इसी कालिख के नीचे दफ़न हैं!
मैं इन ख्यालों जितना ना पहुँच पाया,
बस उम्र में बड़ा हो गया।
खूबसूरत सी ज़िल्द चढ़ा दी है।
कुछ कद्दावर ख्याल जो कभी
मेरे हुआ करते थे,
नाज़ था जिनपे मुझे,
इसी कालिख के नीचे दफ़न हैं!
मैं इन ख्यालों जितना ना पहुँच पाया,
बस उम्र में बड़ा हो गया।
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