Sunday, 29 March 2020

घर तो है Ghar to hai

रूठा है अभी ,मुकद्दर तो है
चलो क़ैद ही सही,घर तो है,

पाँव पसारने की गुंजाइश है
रात सर्द है,पर गर्माइश है,
नींद ही कम है,
बिस्तर तो है,
चलो क़ैद ही सही,घर तो है।

जुबां आज़ाद अब भी है
बोलने का सबब भी है,
नज़ारा भले तंग है
खुली-खुली नज़र तो है।
चलो क़ैद ही सही घर तो है।

कुछ उधर ऐसे भी लोग हैं
जिन्हें मुफ़लिसी का रोग है।   मुफ़लिसी -poverty
वो आँख भूख से जगी रही
और हमें दाल अच्छी लगी नहीं,
कोई साथ नहीं उनके,
अरे हाँ । डर तो है।
क़ैद ही सही,घर तो है।
रूठा है अभी, मुकद्दर तो है।



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