कहाँ जैसे?
बन तू जाता है एहसास मेरा,
कब तुझे आता है होश
मेरे बारे में
जब फिरता है दिन दुनिया भुलाये सारे में
कहाँ जैसे पुकारती है सोच
नाम मेरा
कहाँ जैसे?
नज़र वापिस आती है
रास्ता भुलाने का डर
तुझे नहीं आता क्या
कोई साया बढ़कर पीठ नहीं खटखटाता क्या
नहीं होता क्या धुंधला घर
राह बिछड़ते हुए ज़रा सी साँस तो घबराती है
कहाँ जैसे?
बहाता है आँसू, किसके पास
या सचमुच ही तू पथराया
जब बोलकर जाता है अभी आया
होकर कहाँ से आता है सच बता
अगर मैं हूँ कमज़ोर तो आहिस्ता-आहिस्ता....
या इशारा कर हल्का सा छोड़ेगा साथ
कहाँ जैसे?
~गौरव चारस नेगी~