Tuesday, 19 May 2015

रूह का

नमकीन आँसू फर्श पर लेटे,
दो-चार पलकों ने समेटे।

जाने हुआ फिर  क्या,
रोते-रोते हँसना पड़ा ,
याद में उनकी ..
खातिर जिनकी तरसना पड़ा ,

किसी गैर मंज़िल का
अरमान कर बैठे ,
बिन चले पैरों का
नुकसान कर बैठे,

नमकीन आँसू फर्श पर लेटे,
दो-चार पलकों ने समेटे।

नरम पड़ते देखा उनको
जब उन्हें ज़रूरत मेरी हुई,
फिर भी सबके सामने
शक्ल बदसूरत मेरी हुई ,

उन्हें पाना जितना मुश्किल
भूलना हमें वो उतना ही
आसान समझ बैठे ,
जिनके ख्याल है दिल बेचैन ..
हम रूह का
इत्मीनान समझ बैठे ,

नमकीन आँसू फर्श पर लेटे,
दो-चार पलकों ने समेटे।

Saturday, 9 May 2015

तल्ख़ी आपकी

निढ़ाल हुआ चाँद भी तल्ख़ी से आपकी ,
दौड़ी आई चाँदनी शक्ल लेने लिबास की।

मनमर्ज़ियों की शोख़ियाँ अर्ज़ियाँ सब टाल कर,
किसके लिए रखे हुए हो खुद को सँभाल कर,

वक़्त से पहले टंगे तारे , टोह लेने जनाब की,
और तू समझा 'चारस ',सिर्फ तूने नींदें ख़राब की।

हालाँकि उम्र इतनी नहीं कि फ़ायदा -नुकसान लो,
नीयत खिदमतगारों की  मगर ज़रा पहचान लो,

हुस्न बने फूल तो लुटे खुशबू बाग़ की,
गर बने काँटा तो चुगे मछलियाँ तालाब की।

Saturday, 2 May 2015

अरमान सिर्फ इतना

तुम मुकर जाओ ना , प्यार मुझसे निभाया जा नहीं सकता ,
एक खानाबदोश ज़िन्दगी लेकर घर बसाया जा नहीं सकता।

तुम दिल तोड़ोगे मेरा , मैं कुचल जाऊंगा किसी और का ,
इस दलदल में किसी को ,बेवफा होने से बचाया जा नहीं सकता।

अरमान सिर्फ इतना कि ज़िंदा रहते मशहूर हो जाएँ ,
राहत इज़्ज़त जन्नत , मरकर क्या कुछ कमाया जा नहीं सकता।

दो-चार ग़ज़ल लिख कर मुफलिसी-मुहब्बत पर 'चारस' ,
आवाम के दिलों से चाह कर भी ग़ालिब चुराया जा नहीं सकता।

दैत्य

  दैत्य   झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...