![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxYz9W-csaNe5q3uNPSKY7nFThJ_wm2DZdX__l8O9rSuqOhdNFw7a0xZuKcT204bgy0sm7sIq1CyLRo9OeIW-PkVfcEc_W3tqxs1V_jDmyfZpsvwhzNMBna-Ev2QoF2-ppuLMeOnVLKw/s1600/creativity.jpg)
मेरे कदम थे मैंने चलना मुनासिब समझा,
उसके कदम थे उसने कुचलना।
हौसलों की बात की होगी बेशक बड़े बुज़ुर्गों ने ,
हमें तो तोड़ मरोड़ कर रख दिया तजुर्बों ने ,
मेरी कोशिश थी मैंने जुटना मुनासिब समझा,
उसकी कोशिश थी उसने लुटना।
दाने -दाने की फ़िक्र करते करते सयाने बहुत बने,
महोब्बत की वजह नहीं मिली ,हाँ बहाने बहुत बने ,
मेरी मर्ज़ी थी मैंने भूलना मुनासिब समझा ,
उसकी मर्ज़ी उसने झूलना।
इस डर से नहीं हूँ ज़िंदा कि मुझे मौत डरावनी लगती है ,
बल्कि इसलिए हूँ क्यूंकि सुना है,
मरने के बाद ज़िन्दगी नहीं बचती है,
मेरी ख़्वाहिश थी मैंने संवरना मुनासिब समझा ,
उसकी ख़्वाहिश थी उसने बिखरना।
हमें तो तोड़ मरोड़ कर रख दिया तजुर्बों ने ,
मेरी कोशिश थी मैंने जुटना मुनासिब समझा,
उसकी कोशिश थी उसने लुटना।
दाने -दाने की फ़िक्र करते करते सयाने बहुत बने,
महोब्बत की वजह नहीं मिली ,हाँ बहाने बहुत बने ,
मेरी मर्ज़ी थी मैंने भूलना मुनासिब समझा ,
उसकी मर्ज़ी उसने झूलना।
इस डर से नहीं हूँ ज़िंदा कि मुझे मौत डरावनी लगती है ,
बल्कि इसलिए हूँ क्यूंकि सुना है,
मरने के बाद ज़िन्दगी नहीं बचती है,
मेरी ख़्वाहिश थी मैंने संवरना मुनासिब समझा ,
उसकी ख़्वाहिश थी उसने बिखरना।