Friday, 20 March 2015

मुनासिब।

मेरे कदम थे मैंने चलना मुनासिब समझा,
उसके कदम थे उसने कुचलना।

हौसलों की बात की होगी बेशक बड़े बुज़ुर्गों ने ,
हमें तो तोड़ मरोड़ कर रख दिया तजुर्बों ने ,

मेरी कोशिश थी मैंने जुटना मुनासिब समझा,
उसकी कोशिश थी उसने लुटना।

दाने -दाने की फ़िक्र करते करते सयाने बहुत बने,
महोब्बत की वजह नहीं मिली ,हाँ बहाने बहुत बने ,

मेरी मर्ज़ी थी मैंने भूलना मुनासिब समझा ,
उसकी मर्ज़ी उसने झूलना।

इस डर से नहीं हूँ ज़िंदा कि मुझे मौत डरावनी लगती है ,
बल्कि इसलिए हूँ क्यूंकि सुना है,
मरने के बाद ज़िन्दगी नहीं बचती है,

मेरी ख़्वाहिश थी मैंने संवरना मुनासिब समझा ,
उसकी ख़्वाहिश थी उसने बिखरना।

Sunday, 15 March 2015

बेक़रार की तरह।

बहुत भटका दर-ब-दर बेक़रार की तरह,
तुम आराम देने आ जाओ इतवार की तरह।

खाली बोतल की तरह ठोकरों से बजता-बचता,
आज भी अधूरी मंज़िल हर बार की तरह।

हालातों को ललकार बैठी जिस्म की गर्मी,
इश्क़ सर चढ़ रहा था बुखार की तरह।

मेरे ज़ख़्म नमक से ढक कर वो बोले,
चोट जिस्म से उभरती थी वर्ना दरार की तरह।

क्या बताऊँ 'चारस' आखिर किस तरह से वो,
ढह गया सहारा देकर मीनार की तरह।

मैं आखिरी सांसें गिन रहा था उसके सामने,
और वो पेश आने लगा दुनियादार की तरह।

Thursday, 12 March 2015

बेपरवाह ।

beparwah


अहम का सवाल मुँह बाए खड़ा बेवक़्त ,

एक तो इतनी सर्द रात, ऊपर से नींद नहीं आती। 


तेरे मेरे ख्याल मिलें मिलें इतनी शुक्र है,
हम दोनों को ही बात की शुरुआत करनी नहीं आती

हुआ रहता हूँ बेपरवाह सभी नातों से मैं,
वक़्त लगता है,
ज़िन्दगी के फलसफों की समझ यूँ नहीं आती

दोनों ही करवटों से उकता गया हूँ 'चारस'
या तो डूबना या तरना,
ये झूझने की रुत क्यूँ नहीं आती।


Tuesday, 10 March 2015

तकदीरें सब झूठी हैं।

तकदीरें सब झूठी हैं, तसवीरें फरेबी।
किस्मत से महरूम हाथ... लकीरों से भरे भी।

ज़िन्दगी कुछ नहीं चाहती,सब अपनी ज़रूरत है,
सदियों की ख़्वाहिशें, दो-चार दिन की आदत है ,
हुकूमतों को कम पड़े हैं, महलों के आसरे भी।
किस्मत से महरूम हाथ... लकीरों से भरे भी।

मेरे ज़ख़्मों को ढ़कने तो अँधेरा आगे आया
रोशनी ने बिना कपड़ों के हर राह मुझे नचाया
एक दफ़ा जीने के लिए सौ तरह से मरे भी
किस्मत से महरूम हाथ... लकीरों से भरे भी।
तकदीरें सब झूठी हैं, तसवीरें फरेबी।

दैत्य

  दैत्य   झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...