Saturday, 27 May 2017

शहर की दास्ताँ (Shehar ki Dastan)


शहर की दास्ताँ को कलमबद्ध करते हैं,
ये शहरवाले भी हद करते हैं.....!

बच्चों को सयानेपन की हिदायत देकर,
खुद बच्चों सी हरकत करते हैं.....!

जिसे गुनगुना कर मुस्कुराया जा सके,
चल ऐसे गीत की आमद करते हैं....!

इन मेहमानों को गले से लगाते हैं,
इन ग़मों की खुशामद करते हैं.....!

जवाँ दिल की आरज़ू है चाँद,
इस उम्र में लोग अक्सर ऐसी ज़िद करते हैं....!

हक़ीक़त में तो बड़े बदसूरत हैं ये "चारस",
इन ज़ख्मों पर खूबसूरत सी ज़िल्द करते हैं....!

Tuesday, 16 May 2017

मैं कौन हूँ तलाश लूँ (Mai Kaun Hoon Talash loon)

तुमसे कोई शुबह नहीं  ,मैं कौन हूँ तलाश लूँ , 
उस तलक मैं सोच लूँ, ख़ामोश रह के सांस लूं.....!

जन्नत के सौदे में होगी कीमत भले ही रूह की,
वहम में जी लूँ या कोई  फिर बदन तराश लूं ....!

या रोज़ोशब ख्याल जिस प्यास के हैं कौंधते ,
नाम उसका लेके अब हाथ में शराब लूं.......!

बहुत फिकर जहान की, जहान के मक़ाम की ,
बाजार जा के इस दफा कोई नई किताब लूं .....!

लम्हे की ज़िन्दगी जिया ,मेरा कहा मेरा किया, 
कितनी बातों पे अब वक्त से इंसाफ़ लूँ.......!

पहचानने लगे हैं लोग चारस है शख्स कोई ,
कहने से पहले गौर करूँ ,या और एक नक़ाब लूँ ......!

तुमसे कोई शुबह नहीं  ,मैं कौन हूँ तलाश लूँ , 
उस तलक मैं सोच लूँ, ख़ामोश रह के सांस लूं.....!

दैत्य

  दैत्य   झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...