चल घर से निकलते हैं
कुछ हौसला करते हैं ,
बारिश रुक नहीं सकती
तो बारिश में घुला करते हैं।
चेहरों के नहीं दाग मन के
इस धुन में धुला करते हैं।
मंज़िल न सही हमराही मगर
रास्तों पर मिला करते हैं।
ज़ेहन में अनगिनत जेब में चन्द,
हम आ रहे हैं
ख्वाहिशों को इत्तिला करते हैं।
बयान उसकी मुश्किल का सुन लेना 'चारस',
उधेड़बुन में अक्सर
लोग खुला करते हैं।
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