दैत्य
झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं
सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं ,
नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं
यहाँ तक कि मामूली पतंग भी नहीं ,
एक चींटी किधर भटकी
चढ़ती सीढ़ी मौत की
कहीं रह गई
या पहुँची ,
परवाह किसे
कि आये पूछ उसे ,
साबुत निगल गया
समाज उसे,
ये दैत्य जो अमर है
पूज उसे।