मैं भी उसी दौर में हूं
जो तुमने गुज़ारा या गुजारोगे
थोड़ा सा ही सही
तुम्हें नहीं
तो हालात पहचानता हूं,
कुछ बुझे से बैठे हो,
कुछ चिंगारी को हवा देते हो,
और जब तब मशाल हाथ में लेते हो,
खुद से अपने क्या कहते हो?
कौन सा मकसद सधता है
किस जुगत में रहते हो?
तुम जानो
तुम्हारा मकसद जाने
मुझे तुम्हारी आग से नहीं तपना
ना जलना
ना ताकत लेनी,
वह ज़िम्मा है तुम्हारा
इतने वक़्त से जो संभाली तुमने
उस उम्मीद उस यकीन का ज़िम्मा
तुम्हारा है,
मुझे मत दो,
नहीं संभाली जाए तो फेंक दो
या सहारा देते रहो,
बस मुझे मत दो,
जिसको मतलब होगा खुद तुमसे ले लेगा,
मेरी काम की होगी मैं मांग लूंगा
ज़रूरी हुई चुरा भी लूंगा,
तुम अपनी मशाल खुद संभालो,
आखिर तक जाने की आदत डालो
या ना डालो।
बस मुझ तक मत आओ।
अपनी मशाल खुद जलाओ।