जाने कौन हो जाना चाहता है तू,
जो है,उसे खो जाना चाहता है तू,
जब कहता है तू ,तो दिखता है किसी का असर
ये किसे दोहराना चाहता है तू?
अपने चोटिल माज़ी से ना रिहा होने वाला है, (माज़ी- past)
इस रात भी न सोया तो तबाह होने वाला है,
क्या अपने अंदर वो दीवाना चाहता है तू?
और कुछ नहीं कहलाना चाहता है तू?
खुद अपनी ग़ज़ल में उतार खुद को,
दो कसीदे ज़माने पे ,तो चार खुद को
लिखकर छोड़ जाना चाहता है तू,
इसी डायरी में ठिकाना चाहता है तू।
है शोर इस तरफ ,क्या ये ओर गलत?
यही खेल....बदलेगा पाला, धत्त!
सिर्फ ये जानने के लिए कि नही कोई उस पार
चल रास्ता आधा,
इकतरफा ही सही ,प्यार में इतना है काफी से कहीँ ज़्यादा,
नशा है,दोहराना चाहता है तू।
ये क्या आफत लाना चाहता है तू
जाने कौन हो जाना चाहता है तू,
जाने कौन हो जाना चाहता है तू|