Monday, 23 June 2014
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दैत्य
दैत्य झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...
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हर बार बदला बदला लगता है। मिलूं तो हंसता है, ना मिलूं तो हंसता है, ये शहर मना कर देता है मेरी जागीर होने से। और मैं इसकी ज़िद का झूठा ही सह...
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दैत्य झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...
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photo-credit:Kavita कौन बेहतर है कौन बद्तर ज़रा बस परखने की देरी है , किसी ने डाँटकर भी गले लगाया किसी ने ह...