Kabhi yun bhi tere sath hua hoga,
raste-dr-raste,
safar-dr-safar..
Din raat chala hoga.
Fir ek roz palat kar jab dekha hoga,
meri tarah..
Tu bhi kahin nahin pahuncha hoga.
Thursday, 27 March 2014
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दैत्य
दैत्य झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...
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हर बार बदला बदला लगता है। मिलूं तो हंसता है, ना मिलूं तो हंसता है, ये शहर मना कर देता है मेरी जागीर होने से। और मैं इसकी ज़िद का झूठा ही सह...
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दैत्य झुँझलाहट की कोई ख़ास वजह नहीं सुना सकूँ इतना ख़ास हादसा भी नहीं , नुचवा लिए अब ख़्वाबों के पंख नहीं यहाँ तक कि...
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वो कारवां निकल गया है दूर कहीं दूर.... ना दीदार में नशा रहा ना आंख में सुरूर। साथ कोई चलता हो तो बेशक चले, हार कर ताकि राह में लगा सकें...