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photo-credit:Kavita |
कौन बेहतर है कौन
बद्तर
ज़रा बस परखने
की देरी है
,
किसी ने डाँटकर
भी गले लगाया
किसी ने हँसकर
भी नज़र फेरी
है।
खुद को बटोर
लेना मजमा लगाकर
कहीं शौक है
, कहीं ज़रूरत,
बेगैरत कहलाते लावारिस तो
कहीं
रिश्ता जायज़ ,मगर बदसूरत,
राह पहले भी
धुंधलकों से गुज़री
,
रात आगे भी
कुछ अँधेरी है।
कौन बेहतर है कौन
बद्तर
ज़रा बस परखने
की देरी है
,
कौन करीब आया,कौन आ
न सका,
कभी इत्मीनान से गुफ्तगू
करेंगे,
पिछली ख़्वाहिश से मिलेगा
छुटकारा
तब जाकर अगली
आरज़ू करेंगे,
उसके चेहरे को मैं
भुला न सका
ख़ासियत उसकी नहीं,कमी मेरी
है।
कौन बेहतर है कौन
बद्तर
ज़रा बस परखने
की देरी है।