Tuesday, 2 December 2014

धुँधली ख़्वाहिशें



photo-credit:Kavita
कौन बेहतर है कौन बद्तर
ज़रा बस परखने की देरी है ,
किसी ने डाँटकर भी गले लगाया
किसी ने हँसकर भी नज़र फेरी है।



खुद को बटोर लेना मजमा लगाकर
कहीं शौक है , कहीं ज़रूरत,
बेगैरत कहलाते लावारिस तो कहीं
रिश्ता जायज़ ,मगर बदसूरत,
 
राह पहले भी धुंधलकों से गुज़री ,
रात आगे भी कुछ अँधेरी है।
कौन बेहतर है कौन बद्तर
ज़रा बस परखने की देरी है ,









कौन करीब आया,कौन सका,
कभी इत्मीनान से गुफ्तगू करेंगे,
पिछली ख़्वाहिश से मिलेगा छुटकारा
तब जाकर अगली आरज़ू करेंगे,



 उसके चेहरे को मैं भुला सका
ख़ासियत उसकी नहीं,कमी मेरी है।
कौन बेहतर है कौन बद्तर
ज़रा बस परखने की देरी है।
 

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